चकबंदी विभाग में कायदा-कानून ताख पर, विभाग लूट-खसोट का अब व्यवसाय बन चला किसान परेशान
अमेठी। चकबंदी विभाग लूट-खसोट का अब व्यवसाय बन चला है। काम एक अधेला भी नही और मुंह मांगी फरियाद अधिकारी और कर्मचारी करते है। किसी को वरासत कराना है और खारिज-दाखिल कराना है बकायदे सर्किल के हिसाब से रेट तय है। शहरी क्षेत्र है तो दर्जन भर बार कार्यालय का चक्कर लगाओं ग्रामीण क्षेत्र है तो कम से कम तीन से चार बार में लेखपाल और कानून गो तक मामला पहुचता है इसकें बाद नजराना मिलने के बाद फाइल तैयार होती है और नजराने में कमी रही तो अधिकारी आदेश करने से कन्नी काट जाते है। तीन-चार बाद भी लोग अधिकारी को खुश करने में ही किसान टूट जाते है। कौन बला माने मुंह-मांगी रिश्वत देकर सरकार को कोसते हुए अपने घर की राह पकड़ते है। जबाव देह न तो अधिकारी है और न ही राजनैतिक दल के नेता है। जनप्रतिनिधि तो भष्ट्राचार के समुंदर में डुबकी लगा रहे है। इन सबके पीछे परदे की आड़ में अपराधियों का बहुत बड़ा जाखिरा इस खेल को अंजाम देता है। ऐसे में अधिकारी कर्मचारी से कोई पंगा लेने को तैयार नही। जनता में जनसहभागिता अब नही कागज के खेल में अधिकारी कर्मचारी रिश्वत के चलते जनसहभागिता का पाठ शासन-प्रशासन को पढ़ा रहे है।
सहायक चकबंदी राजगढ़ में लेखपाल दीपेन्द्र श्रीवास्तव गौरीगंज के मूल निवासी है इनके विधायक और एमएलसी बेहद नजदीकी संबंध है। किसान कृष्ण कुमार, सूर्य भान, राजेश कुमार, विजयभान, रामपियारे, राजकुमार आदि बताते है कि सहायक चकबंदी कार्यालय में चपरासी का नजराना 200 रूपये, पेशकार का नजराना 400 रूपये, नायबतहसीलदार का नजराना 2000 रूपये इसकी जानकारी लेखपाल दीपेन्द्र श्रीवास्तव बताते है। इतना जुगाड़ नही है तो नोटिस भेजकर इक्वायरी की जायेगी फि र मुकदमा चलेगा जब आदेश होगा यह तो अदालत जाने मेरे फारमूले से काम कराना है तो साहब से नही मुझसे मिलो।
नायबतहसीलदार चकबंदी आनन्द कुमार बताते है कि बिना कागजात के कोई काम खारिज-दाखिल और वरासत का काम नही होता। जिसका काम है वो अदालत के सामने पेश हो। नजराना कोई मांगता है तो इसके लिए अदालत जिम्मेदार नही है। सारे काम कायदे-कानून से और नियत समय में निपटाये जाते है।
नायबतहसीलदार कार्यालय चकबंदी अमेठी के गांव सरवनपुर में डेढ़ दशक से चकबंदी प्रक्रिया में गांव शामिल है अभी कितने मामलें निपटे नही और चकबंदी प्रक्रिया भी उलझी पड़ी है। सजरा मानचित्र का चिथरा उड़ गया है। यही नही खेतौनी का मूल दस्तावेज ही गायब कर दिया गया है और दूबारा दस्तावेज तैयार किया गया लेकिन अभी चकबंदी प्रक्रिया कब तक चलेगी किसानों को भी जानकारी नही। इस चकबंदी गांव में नोट बरस रहा है और जितना क्षेत्रफल है उससे भी कही अधिक अधिकारियों ने आदेश किसानों को थमा दिये है। जो चकबंदी कर्मियों के लिए सिरदर्द बना है और सिर फुतौवल भी हो रही है। चकबंदी अभिलेखों में एक बार अदालत का आदेश दर्ज कराया गया लेकिन दुबारा अभिलेख गायब होने के बाद लेखपाल पुनः अदालत का आदेश मांग रहे है। राजस्व अभिलेखागार सुलतानपुर से किसान 500 से लेकर 1000 रूपये तक देने के बाद अभिलेखागार से आदेश की प्रतिलिपि किसानों को मिल रही है। आखिर सरवनपुर की चकबंदी कब खत्म होगी। अधिकांश ग्राम समाज की जमीन पर सरहंग का कब्जा हो चला है। इस अबैध कब्जें में तहसील और चकबंदी विभाग की मिलीभगत किसान बताते है।
इस संबंध में बंदोबस्त चकबंदी अधिकारी बताते है कि शिकायत मिली तो कार्यवाही होगी सहायक चकबंदी अधिकारी नियम के विरूद्ध काम करेंगे तो कानूनी शिंकजा कसा जायेगा और रही बात राजगढ़ कार्यालय तो मामले की पड़ताल करायी जायेगी बात सही पाई गयी तो उच्चाधिकारियों को इनकी शिकायत भेजी जायेगी। ग्राम सरवनपुर में ग्राम सभा की जमीन पर अतिक्रमण की शिकायत मिली है। इस पर जल्द जांच टीम गठितकर कार्यवाही की जायेगी।
